वैदिक संस्कृति
हड़प्पा संस्कृति के पतन के बाद भारत में एक नवीन संस्कृति का विकास हुआ इस संस्कृति के बारे सम्पूर्ण जानकारी का स्रोत ‘वेद’ है। इसलिये ऐसे वैदिक संस्कृति का नाम दिया गया है। यह संस्कृति अपनी पूर्ववर्ती हड़प्पा सभ्यता से कफही भिन्न है इस संस्कृति के संथापक आर्य थे इसलिये कभी कभी इसे आर्य संस्कृति भी कहा जाता है । यहां आर्य शब्द का अर्थ है- श्रेष्ठ उत्तम उदात्त अभिजतय कुलीन उत्तकृत एवं स्वतन्त्र इत्यादि। वैदिक संस्कृति को दो भागों म बाटा गया है।
- ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)
- उत्तरवैदिक काल (1000-600ई.पू.)
ऋग्वेदीक काल (1500-1000 ई. पू.)
- इस काल में आर्य सप्तसिंधु क्षेत्र में रहते थे आर्यो का आरंभिक जीवन पशु चारण पर निर्भर था कृषि उनका गौण व्यवसाय था।इस प्रकार सिंधु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
- आर्य लोग स्थायी या स्थिर निवासी नही थे इसलिये अपने पीछे कोई ठोस भौतिक अवशेष नही छोड़ गए
- वैदिक साहित्य में चार वेदों एवं उनकी संहिताओं, ब्राम्हण ,आरण्यक , उपनिषदो एवं वेदांग को शामिल किया जाता है।
- वेदों की संख्या चार है।
- ऋग्वेद
- सामवेद
- यजुर्वेद
- अथर्ववेद
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