मामा-भांजा मंदिर दंतेवाडा ( बारसूर )

छत्तीसगढ़ प्राकृतिक द्वश्यो से एक संपन्न राज्य है जिसका अपनी प्राकृतिक छटा अपने आप में अनोखा है कहीं पर नदी कहीं पर पर्वत तो कहीं पर राष्ट्रीय उद्यान उपस्थित हैं जो छत्तीसगढ़ में होने वाले महत्वपूर्ण एग्जाम cgpsc , cgvyapam आदि मे पूछे जाते हैं।

मामा- भांजा के नाम से प्रसिद्ध इस प्राचीन मंदिर मैं भगवान शिव का परिवार स्थापित है | कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण दो शिल्पकार ओ न मिलकर एक ही दिन में कर दिया था यह सिर्फ का रिश्ते में मामा और भांजा थे इस वजह कि इस मंदिर को मामा भांजा मंदिर कहा जाता है |

एक अन्य जनश्रुति के के अनुसार वर्षों में गंगवा शिव राजा का साम्राज्य था

राजा का भांजा कला प्रेमी का इसने अपने मामा राजा को बिना बताए उत्कल देश चला गया

था से एक शिल्पकार को बुलाकर एक भव्य मंदिर बनवाने लगा राजा को इससे जब इसकी जानकारी मिली

तो उसे बड़ी जय हो इसने अपने भांजे को बुलवाकर प्रताड़ित किया

भांजे ने आवेश में आकर अपने मामा की हत्या कर दी बाद में उसी काफी कब पछतावा था |

पश्चात के लिए उसने एक मंदिर में उसी की मूर्ति उसके शरीर के आकार का मनवा को स्थापित किया आता मामा की स्मृति से मैं इस मंदिर के निर्माण करवाया इसके बाद भांजे की नियुक्ति केवा मंदिर में भी उसकी मूर्ति में स्मृति में मूर्ति स्थापित की गई इस प्रकार इन दोनों मूर्तिकार नहीं मांगा कहा जाता है

कुछ विद्वान इन इसे प्राचीन शिव मंदिर होने की बात कहते हैं इसके चबूतरे पर एक तेरहवीं शताब्दी के तेलुगू शिलालेख संबंधी निर्माण की तारीख का पता चलता है कि इसके नजदीक का भी एक गणेश मंदिर रहा होगा लेकिन आजकल भगवान के अवशेष बचे हैं |

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बानसूर बानसूर की इतिहासिक धरोहर कुछ ऐसी है कि जिसे देखने के लिए हर हर साल दूर से बड़ी बड़ी संख्या में लोग आते हैं कोई यहां के धार्मिक स्थलों के दर्शन करने के लिए आते हैं तो कोई यहां की गौरवशाली इतिहास का जीवित मजरा देखने आते हैं छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक जाता ज्ञात प्रतीक प्राथमिक पुरातन इन तीनों में से एक है बरसों से यहां के प्रारंभिक इतिहास के बारे में दीवानों विद्वानों के बीच कोई कई मत एकमत कोई एकमत नहीं है कुछ का दावा है कि यह 840 ईसवी में से पहले के गंगा वंशी सास सास को किस आसन शासकों की राजधानी थी अन्य नियम तर्क देते हैं कि इसे नागवंशी द्वारा बनाया |

जिन्होंने 10वीं 11वीं ईस्वी में कवियों द्वारा विस्थापित किया है जाने से पूर्व लगभग 3 शताब्दियों तक इस भूमि की अधिकतर भूमि पर राज्य किया था माना जाता है कि भरतपुर में इसकी अच्छे दिनों में लगभग 15 संबंधित थे इसमें एक 11 वीं सदी शताब्दी का चंद्रा दित्य मंदिर है या माना जाता है कि इसका निर्माण समिति सदस्य द्वारा कराया गया था और इसके नाम पर ही इस का मंदिर उसका नाम पड़ा यहां पर पाए गए वर्षों से लो शैली की अनेक मूर्तियां में गरबा ग्रह के दरवाजे पर विश्नोई की संयुक्त प्रतिमा हरि हर हर हरिहर की भाव भव्य मूर्तियां खंडित मूर्ति में से मनीषा महीसा रुदंती जिसे प्रश्न रूप से जिसे स्थानीय रूप से दंतेश्वरी करते हैं चीन की मूर्ति को अभी भी पहचाना जा सकता है मंदिर के कोने से अंकित मंदिर अलंकृत मंदिर नदी बहता है |

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