अपवाह तंत्र || River drainage system

अपवाह तन्त्र उस प्रदेश या वृहत भौगोलिक इकाई की धरातलीय संरचना, भू-ढाल, संरचनात्मक नियन्त्रण, चट्टानों की प्रकृति, विवर्तनिकी क्रियाएँ एवं जल प्राप्ति आदि पर निर्भर करती है।

हिमालय की नदियाँ

• तीन प्रमुख नदी तन्त्र प्रवाहित होती हैं यथा सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र हैं।

• अनेक नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह का उदाहरण है।

• सालों भर जल भरा रहता है।

• निर्माण की सभी अवस्थाओं में बहती है।

• जल ग्रहण क्षेत्र अधिक है।

• इस क्षेत्र की नदियों की लम्बाई अधिक है।

• अपने साथ बड़ी मात्रा में तलछट लाती है, जिसे पर्वत के पदस्थली पर निक्षेपित कर देती है।

● विश्व के वृहत डेल्टा का निर्माण करती है। हजारों किलोमीटर लम्बी नदी भी सहायक नदी के रूप में बहती है।

• उबड़ खाबड़ पर्वतों से गुजरना, अभिशीर्ष अपरदन, नदी अपहरण जलमार्ग बदलना तथा विसर्प निर्मित करना आदि।

प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ

अनेक नदी तन्त्र का निर्माण करती हैं।

● मौसमी एवं मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती हैं।

• अध्यारोपित, पुनर्युवनित, अरीय व आयताकार प्रारूप बनाती हैं।

प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी है। भ्रंश क्षेत्रों को छोड़कर सभी स्थानों पर नदी तलों की ढाल-प्रवणता बहुत मन्द है।

• अधिकांश नदीयां पश्चिम से पूर्व ओर बहती हैं।

निश्चित एवं छोटा मार्ग है तथा नदी विसर्प करती है।

• अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ ज्वारनदमुख हैं।

• 20 से 25 किमी लम्बी नदी सीधे समुद्र में गिरती है।

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