मोहम्मद गोरी
मोहम्मद गोरी जो वापस गजनी जा रहा था तो मार्ग में 13 मार्च 1240 आ को उसके हत्या कर दी गई उसके शव को
गजनी ले जाकर दफनाया गया क्योंकि उत्तर भारत के इस तुर्क विजेता की कोई संतान नहीं थी और वह बहुत
बड़ी संख्या में अपने साथ दांत लाया था जिन्हें उसने अपने अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया था अतः 1206
ईशा में मोहम्मद गौरी की इस प्रकार अचानक मृत्यु होने पर कुतुबुद्दीन निबटने लोहार में स्थानीय नागरिकों के
अनुरोध पर सत्ता ग्रहण की |
कुतुबुद्दीन ऐबक 1206 से 1210 ई.
कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में तुर्की राज्य की संस्थापक माना जाता है कि वह दिल्ली का प्रथम तुर्क शासक था
सिंहासन पर बैठने के समय एवं को मोहम्मद गोरी के अन्य उत्तराधिकारी गयासुद्दीन मोहम्मद ताजुद्दीन एल्दौज
एवं नसीरुद्दीन कुबाचा के विद्रोह का सामना करना पड़ा सिहासन पर बैठने पर उसने सुल्तान की उपाधि नहीं
ग्रहण की बल्कि के वर्क मलिक और सिपहसालार की परियों से ही संतुष्ट रहा
यह बकने ना तू अपने नाम का खुतबा पड़वा या और ना ही अपने नाम के सिक्के चलाएं बाद में गोरी की
उत्तराधिकारी ज्ञासुद्दीन ने उसे सुल्तान स्वीकार किया
उसे दासता से मुक्ति 1208 ईस्वी में मिली थी
यह बात नहीं हमेशा अर्थात 1200 से 1210 ईस्वी तक लगातार लाहौर से ही शासन संचालन किया लाहौर ही उसकी राजधानी थी
इल्तुतमिश 1210-1236ई.
कुतुबुद्दीन का दामाद उत्तराधिकारी इल्तुतमिश इलबारी तुर्क था
इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था वह तो बुद्धि ने वर्क की मृत्यु के समय वह बदायूं का
सूबेदार था अकस्मात मृत्यु के कारण एवं अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था इस कारण
लाहौर के पूर्व अधिकारियों ने युवक के विवादित पुत्र आराम शाह को लाहौर के गद्दी पर बैठाया परंतु दिल्ली के
तुर्की सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फल स्वरुप युवक के दमाद इल्तुतमिश को राज्य की गद्दी पर बैठा दिया
गया इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बताया मोहम्मद गोरी ने 1206 ईस्वी में खोखरो के विद्रोह के
समय इल्तुतमिश की असाधारण योग्यता के कारण ही उसे दासता से मुक्त कर दिया गया उसने मिनहाजुद्दीन
सिराज तथा मलिक ताजुद्दीन को संरक्षण प्रदान किया उसने लहर के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाई उसने
इक्ता की शासन व्यवस्था और सुल्तान की सेना के निर्माण का विचार दिल्ली सल्तनत को प्रदान किया उसने
मुद्रा मैं सुधार किया वह पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण
सिक्के चांदी का डंका और तांबे का जीतल उसी ने आरंभ किए
रजिया 1236 से 1240 ई.
ग्वालियर से वापस आने पर इल्तुतमिश ने रजिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और चांदी के डंके पर उसका नाम अंकित करवाया रजिया के काल से ही राष्ट्र और दुर्ग सरदारों के बीच संघर्ष आरंभ हुआ रजिया सुल्तान दिल्ली की जनता तथा अमीरों के सहयोग से राज्य से आसन पर बैठी रजिया ने अल्तूनिया से विवाह कर लिया और दोनों दिल्ली की ओर बढ़े किंतु वह बरहम शाह द्वारा पराजित हुई तथा 13 अक्टूबर 1240 ईस्वी में उसकी हत्या कर दी गई
मुईजुद्दीन बहरामशाह 1240- 1242ई.
अपनी शासन सत्ता को सुरक्षित करने के लिए दुर्ग अधिकारियों ने एक नवीन पद नायब ए मूमलकत की स्थापना की जो संपूर्ण अधिकारों का स्वामी होगा यह पदक संरक्षक समांथा सर्वप्रथम यह पद नायब रजिया के विरुद्ध षड्यंत्र करने वाले नेता ऐतगिन को मिला इस प्रकार वास्तविक शक्ति व सत्ता के तीन दावेदार थे सुल्तान नायाब और वजीर कालांतर में ऐतगिन की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि उसने अपने महल के सामने सुल्तान की तरह नौबत एवं हाथी रखना प्रारंभ किया उनके शासनकाल में 1241 ईसवी मंगोलों का आक्रमण हुआ था |