महामाया माता का मंदिर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है
आदिशक्ति मां महामाया देवी की पवित्र धार्मिक नगरी रतनपुर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवशाली है
मां महामाया देवी मंदिर का निर्माण रत्न देव प्रथम द्वारा 11वीं शताब्दी में
कराया गया था | जो सन् 1045 में रत्नदेव राजा रात्रि में मानिकपुर नामक
गांव में रात्रि विश्राम एक वट वृक्ष पर किया था | रात्रि मे राजा की आंखें खुली
तब उन्होंने नीचे अलौकिक प्रकाश देखा यह देखकर चकित हो गए कि वह
आदिशक्ति श्री महामाया देवी है और 1050 ई. में श्री महामाया देवी का भव्य
मंदिर निर्मित किया गया |और नगर शैली में बने मंदिर का मंडप 16 स्तंभों
पर टिका हुआ है मां महामाया की फिर उसी भव्य प्रस्तर प्रतिमा स्थापित
मान्यताओं के मां की प्रतिमा के दृष्टि भाग में मां संतोषी की प्रतिमा है जो
विलुप्त माना जाता है
माता के दरबार मे प्रति दिन हजारो की सख्यां मे लोग माता के दर्शन के
लिए आते है तथा नवरात्रि मे लाखो कि सख्यां मे भक्त माता के दर्शन के लिए
आते है और भक्त माता का पुजा-आर्चना करके अपनी मनोकामना को
मागते है तथा कहा जाता है कि माता अपनी सभी भक्तो कि मनोकामना को
पुरी करती है| श्रध्दलुओ व्दारा अनेक उपहार माता को दिया जाता है|
महामाया मंदिर मे अखंड ज्योति जालता रहता है और यहाॅं पर श्रध्दलुओ के
व्दारा ज्योति कलश जलाया जाता है तथा महामाया मंदिर मे हजारो के
सख्यां मे ज्योति कलश जलाया जाता है|
माता के मंदिर के दरबार मे भद्रकाली माता का मुर्ति , पंचमुखी शिव भागवान , हनुमान भागवान आदि की प्रतिमा विराजित है|
बिलासपुर जिले से 26 कि.मी. कि दूरी पर रतनपुर मे महामाया का मंदिर स्थित है |
मंदिर तक जाने का मार्ग-
महामाया मंदिर तक पहुचने के लिए सड़क मार्ग और रेलवे मार्ग उपलब्ध है
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